क्या गुटबाजी की शिकार है जिला भाजपा? एक मंच पर नहीं दिख रहे हैं दिग्गज
बेमेतरा, अमन ताम्रकार । अब तक कांग्रेस का पर्याय रही गुटबाजी और आपसी सिर फुटौव्वल बेमेतरा जिला भाजपा में हावी होती दिख रही है. कई धड़ों में बंटी बीजेपी यदि चुनाव से पहले नेताओं से मतभेद खत्म नहीं करती है तो जिला व सूबे की सत्ता में वापसी की राह मुश्किल हो सकती है.
पार्टी के सांगठनिक पद के समय में तेजी से उभरी अंतर्कलह व गुटबाजी ने भाजपा की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है।
जनप्रतिनिधियों व संगठन में चल रहा शह और मात का खेल
राज्य में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है सूबे में बीजेपी के भीतर नेताओं के गुटों में शह और मात का खेल भी तेज हो गया है. चाहे प्रदेश का संगठन का कार्य योजना हो चाहे राष्टीय सगठन का काम पार्टी में गुटबाजी खुलकर देखने को मिल रहा है.
कांग्रेस ने लिया एकजुटता का संकल्प!
अब तक भीतरघात, भाई-भतीजावाद, गुटबाजी, ऐसे शब्द थे जिन्हें बीजेपी के लोग कांग्रेस की संस्कृति बताया करते थे. अमूमन बीजेपी खुद को पार्टी विद डिफरेंस कहती है. दावे किए जाते थे कि कैडर आधारित बीजेपी अकेली ऐसी पार्टी है, जहां लोकतंत्र है और गुटबाजी या भीतरघात कतई नहीं है. लेकिन अब लगता नहीं कि ऐसा है. गुटबाजी अब बीजेपी के अंदर भी साफ देखी जा सकती है.
एक तरफ छत्तीसगढ़ भाजपा में एकजुटता का संदेश देने के लिए पार्टी संगठन के बड़े नेता एक साथ जगदलपुर में चिंतन शिविर के समापन अवसर पर बस्तरिया धुन मादर के थाप में ये पान वाले बाबू के धुन में थिरकते देखे जाते है तो वही बेमेतरा जिला भाजपा में संगठन निरन्तर जनप्रतिनिधियों का उपेक्षा करते नजर आ रहा है जिसको सम्हालने की दमखम जिला संगठन में नही दिखती।
बेमेतरा जिला मुख्यालय में पिछड़ावर्ग भाजपा प्रकोष्ठ की बैठक में अन्य जिला के ओबीसी नेताओ को खोज - खोज कर आमंत्रित किया गया पर दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री व अन्य कद्दावर मंत्री के गढ़ में ऐतिहासिक जीत का परचम लहराने वाले ओबीसी का सबसे लोकप्रिय बड़ा चेहरा स्थानीय सांसद विजय बघेल को आमंत्रित न करना जिला संगठन में चल रही गुटबाजी का पोल खोल रही है।
होता यूं कि राज्य में सत्तासीन सरकार को घेरने रणनीति बनाने संगठन व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों,पूर्व विधायको और जिला पंचायत सदस्य,जनपद, की आपसी बैठक होती जिसमे सत्तापक्ष के खिलाफ उठाए जाने वाले मुद्दे पर चर्चा करते हैं. जिसके बाद बूथ लेवल तक वादाखिलाफी जनाक्रोश रैली निकलाकर सरकार को घेरते है।
कम नहीं हुई जिला संगठन व सांसद की दूरियां
बीजेपी जिला अध्यक्ष के समय से उभरी गुटबाजी अब लगातार व्यापक होती देखी जा सकती है
सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार अविभाजित दुर्ग में बीजेपी के बेमेतरा जिला में एक बार फिर गुटबाजी सामने आई बेमेतरा जिला में पार्टी के दो बड़े नेता और एक पूर्व केबिनेट मंत्री जिला संगठन का उपेक्षा का शिकार हो बेहद नाराज चल रहे है व एक दूसरे के परस्पर विरोधी बताए जाते हैं. वर्तमान परिस्थिति में आपसी गुटबाजी में उलझि भाजपा जिला में बेहद कमजोर साबित हो रही है, भाजपा में अंगद की पाव की तरह जमे कुछ तथाकथित लोग पार्टी की छवि धूमिल करने का ठेंगा ले रखा है, वर्षो से ईमानदारी पूर्वक पार्टी का कार्य करने वालो को जिला व मंडल से दूर रख पार्टी रीति नीति को ताक में रखकर विगत विधानसभा व लोकसभा में भाजपा अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ खुलकर काम करने वालो को उच्च पद से नवाजे गए है जिसका दबे जुबान में विरोध करते अक्सर देखा जाता है।
2023 में होने वाली विधानसभा चुनाव बहरहाल बहुत दूर है पर दोनों ही मुख्य बड़ी पार्टियां मिशन 2023 को ध्यान में रखकर कैडर तैयार कर रही है ऐसे में आपस मे बिखरी जिला भाजपा विधानसभा की तीनों सीट पर मुकाबले में भी नही दिखती।
कांग्रेस ने जिले की तकरीबन 72 प्रतिशत आबादी वाली ओबीसी बाहुल्य जिला में पिछड़ा वर्ग के लोगो को साधने की जुगत में जिला कांग्रेस अध्यक्ष का ताज ओबीसी वर्ग को देकर मिशन 2023 फतेह की फीडबैक तैयार कर ली है तो वही बमुश्किल से 10 प्रतिशत की आंकड़ो को छूने वाली सामान्य वर्ग को लगातार संगठन में ओहदेदार पद देकर ओबीसी वर्ग को साधने में भाजपा मिलो दूर नजर आ रही हैं जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतनी पड़ सकती हैं।
एक तरह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Narendra Modi ओबीसी वर्ग को साधने विशेष मुहिम चला रही हैं जिसको भाजपा राष्टीय संगठन जमीनी स्तर पर अमल कर देश की 52 प्रतिशत ओबीसी वर्ग में भाजपा की पकड़ मजबूत करने की दिशा में काम कर रही हैं इसके ठीक विपरीत जिला भाजपा की राजनीति में ओबीसी बाहुल्य क्षेत्र में ओबीसी वर्ग का उपेक्षा कर क्या करना चाह रही है समझ से परे है,
2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए बेमेतरा जिला सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहा है. ऐसे में यदि चुनाव से पहले गुटबाजी और निजी स्वार्थ किनारे रख कर संपूर्ण नेतृत्व एकजुट नहीं होता है तो बीजेपी को सत्ता में दोबारा वापसी करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है,
भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन का लक्ष्य लेकर तो चल रही है, मगर संगठन को लेकर मंडल स्तर की निचली इकाईयों में ही जिस तरह गुटबाजी खुलकर सामने आई है, उसने भाजपा के इस बड़े लक्ष्य की राह में कई अंदरूनी खतरों के भी संकेत दे दिए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार कई मौकों पर जिला संगठन को प्रदेश नेतृत्व की भी फटकार झेलनी पड़ी। भाजपा जिला संगठन की अंतरकलह का प्रकरण भी प्रदेश व केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच चुका है। ऐसे में मिशन 2023 की तैयारी के शुरुआती चरण में जिला स्तर पर ही जिस तरह से अंतर्कलह व गुटबाजी के मामले खुलकर सामने आने लगे हैं, उसने भी प्रदेश भाजपा के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। इस पूरे प्रकरण में पार्टी के कई बड़े नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं।
दरअसल यूपी चुनाव के बाद भाजपा हाईकमान की निगाहें छत्तीसगढ़ में 2023 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव पर भी टिकी हैं। यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड में लंबे अरसे तक काम कर चुके आरएसएस पृष्ठभूमि के पार्टी नेता शिवप्रकाश को प्रदेश में सक्रिय कर दिया है, मगर जनहित से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर राज्य सरकार की घेराबंदी में पार्टी संगठन की नाकामी और संगठन में उभर रही गुटबाजी ने पार्टी हाईकमान के लिए भी नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
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अपना किमती समय देने के लिये
धन्यवाद