Yog : हमारे जीवन में योग का महत्व

योग: कर्मशु कौशलम्- स्वच्छता एवं शुद्ध मन की प्राप्ति हेतु भारतीय साधना पद्धति। योग बुद्धि के संशोधनों का निषेध है। योग के संबंध में स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं, कि योग बुद्धि व
चित्त को विभिन्न रूपों में वृद्धि लेने से अवरुद्ध करता है। अर्थात आपकी बुद्धि और चित्त में व्यर्थ की बातें और विचार नहीं आते। भगवत गीता के अनुसार- कर्मयोग अर्थात कर्म करने का योग जिसमें व्यक्ति अपनी स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धा पूर्वक निर्वाह कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि- योग एक सुव्यवस्थित वा वैज्ञानिक पद्धति है, जिसे अपनाकर अनेक प्रकार के प्राण घातक रोगों से बचा जा सकता है। योग अभ्यास के अंतर्गत आने वाले षटकर्मों से व्यक्ति के शरीर में संचित विषैले पदार्थों का आसानी से निष्कासन हो जाता है। वहीं योग- आसन के अभ्यास से शरीर में लचीलापन बढ़ता है व नसों और नलियों में रक्त का संचार तेज गति से सुचारू रूप से होने लगता है।

योग प्राणायाम के करने से व्यक्ति के शरीर में प्राण शक्ति- प्राणिक शक्ति की वृद्धि होती है। साथ ही शरीर से पूर्ण कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन हो जाता है। इसके अतिरिक्त प्राणायाम के अभ्यास से मन की स्थिति मैं स्थिरता भी प्राप्त होती है। जिसके कारण साधक को साधना करने में सहायता प्राप्त होती है और साधक स्वस्थ्य मन वा स्वास्थ्य तन को प्राप्त करता है। 21 जून सन 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था, इस अवसर पर संपूर्ण विश्व के 239 देशों ने योग दिवस का आयोजन किया। हमारे देश की राजधानी नई दिल्ली में एक साथ 35950 लोगों ने एक साथ योग का अभ्यास किया- योगाभ्यास किया जिसमें 84 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे। इस अवसर पर हमारे देश ने दो विश्व रिकॉर्ड बनाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड मैं अपना नाम दर्ज करा लिया है। पहला रिकॉर्ड एक ही स्थान पर सबसे अधिक लोगों के साथ योग और दूसरा एक साथ सबसे अधिक देशों के लोगों के द्वारा योग करने का। 

वर्तमान समय में अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग आराम स्वच्छता और संतोष पाने के लिए योग करते हैं, योग से ना केवल व्यक्ति का तनाव दूर होता है, बल्कि मन और मस्तिष्क को भी शांति मिलती है, योग एक बहुत ही ज्यादा लाभकारी प्रक्रिया है। यह हमारे तन और मन के साथ-साथ हमारी आत्मा को भी शुद्ध करता है। लोगों में बढ़ते मोटापे के लिए योग रामबाण औषधि है। योग आज सारे विश्व में प्रसिद्ध है। विदेशों में योग शिक्षा के माध्यम से मानव को संयत करना,और पाशविक प्रवृत्तियों को मिटाना सिखाया जाता है। जीवन की सफलता किसी भी क्षेत्र में शायद मन पर निर्भर करती है। संयम का अभिप्राय यह है कि किसी एक समय में किसी एक ही वस्तु पर अपने चित्र को एकाग्र करना और आपके चित्त का उस एक वस्तु पर एकाग्र होना, हमारे देश में प्राचीन काल में योग विद्या सन्यासियों या मोक्ष मार्ग के साधकों के लिए ही समझी जाती थी।

योगाभ्यास के लिए साधक को घर त्याग कर वन जंगलों में जाकर एकांत में वास करना होता था। पहले तो हम यह जाने कि आखिर यह योग है क्या ? योग शब्द के अनेक अर्थ होते हैं जोड़ना, मिलाना, मेल करना आदि इसी आधार पर जीवात्मा और परमात्मा का मिलन योग कहलाता है। विशेष संयोग की अवस्था को समाधि की भी संज्ञा दी गई है। वर्तमान समय में योग केवल हमारे देश भर में नहीं अपितु सारे विश्व में योग का स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रयोग एवं उपयोग किया जा रहा है। जिससे उन्हें सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं। जिसके कारण आज योग को सारे विश्व में एक नई पहचान मिल चुकी है।आज पूरा विश्व मान चुका है कि योग विद्या के द्वारा दैहिक रोगों, मानसिक रोगों, शारीरिक रोगों, शरीर की फिटनेस आदि में योग विद्या कारगर सिद्ध हुई है। योग करने से शरीर हष्ट- पुष्ट रहता है व बुद्धि एवं मानसिक शांति रहती है। योग के द्वारा हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।

हमें भी समय निकालकर प्रतिदिन कुछ समय योग करना चाहिए। योग विद्या को हमारे दैनिक जीवन में हमें शामिल करने की नितांत आवश्यकता है। आओ आज योग दिवस के उपलक्ष में संकल्प लें, कि हम अपने जीवन मै योग को शामिल करेंगे। ताकि हमारा शरीर हष्ट पुष्ट रहे स्वास्थ्यवर्धक रहे। हमारे शरीर में कोई रोग ना पनपने पाएं। मोटापा ना बढ़ने पाए, योग शरीर के बाहरी हिस्से को स्वस्थ रखने के साथ-साथ शरीर के अंदर के हिस्सों को भी स्वस्थ वा निरोगी रखता है। मैं हमारे देश की सरकारों से आज विश्व योग दिवस पर यह अनुरोध करना चाहूंगा कि वह योग विद्या को शिक्षा में शामिल करें योग विद्या का भी एक अलग से पीरियड हो जिसमें योग विद्या की शिक्षा दी जाए योग विद्या सभी स्कूलों में कंपलसरी हो ताकि हमारे देश कि आने वाली पीढ़ी हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार अंदर और बाहर दोनों जगह से मजबूत रहें ज्ञानी हो सुखी स्वस्थ संतुष्ट व निरोगी हो आज की पीढ़ी ही हमारे देश के आने वाले भविष्य की कर्ताधर्ता है हमें किसी भेदभाव के बिना योग विद्या को शिक्षा में शामिल करने की नितांत आवश्यकता है, जय हिंद जय भारत।

लेखक – के.के. पाठक, डगनिया, रायपुर

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