इंदौर। मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन हो गया है। वह
कोरोना वायरस से संक्रमित थे। कोविड-19 की पुष्टि होने के बाद 70 वर्षीय
राहत इंदौरी को देर रात अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां आज उन्होंने
अंतिम सांस ली। राहत साहब तो दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन पीछे अदब का वो
विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा नई पीढ़ी के लिए किसी खजाने से कम नहीं होगी।
बड़ा शायर वो है जो शेर बतौर शायर नहीं बल्कि बतौर आशिक कह। जब लोग राहत
इंदौरी साहब को सुनते हैं या पढ़ते हैं तो उन्हें एक ऐसा शायर नजर आता है जो
अपना हर शेर बतौर आशिक कहता है।
वह आशिक जिसे अपने अदब के दम पर आज के हिन्दुस्तान में अवाम की बेपनाह महबूबियत हासिल है। शायरी को लेकर गालिब, मीर, जौक, फैज. इकबाल आदि मुतालिए (अध्यन) के विषय हैं और हमेशा रहेंगे। इनके मुतालिए के बिना तो शेर शुद्ध लिखना और गजल समझना भी दूर की बात है लेकिन गालिब, मीर, जौक, फैज और इकबाल जैसे बड़े शोअराओं के अलावा आज हिन्दी-उर्दू का कैनवस इतना बड़ा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अदब की मशाल राहत इंदौरी जैसे शायर के हाथ में है। यह सच है कि साहित्य इमारतों में पैदा नहीं होती..उसे गंदे बस्तियों में जाकर फनीश्वरनाथ रेनु बनने के लिए आंचलिक सफर तय करना पड़ता है।
1 जनवरी 1950 को राहत साहब का हुआ था जन्म
हर तारीख किसी न किसी वजह से बेहद खास होती है। 1 जनवरी 1950 का दिन भी दो चीजों की वजह से बेहद खास है। एक इसी दिन आधिकारिक तौर पर होल्कर रियासत ने भारत में विलाय होने वाले पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। वहीं इस तीरीख के खास होने की दूसरी वजह यह है कि 1 जनवरी 1950 को राहत साहब का जन्म हुआ था। वह दिन इतबार का था और इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ये 1369 हिजरी थी और तारीक 12 रबी उल अव्वल थी। इसी दिन रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई जो बाद में हिन्दुस्तान की पूरी जनता के मुश्तरका गम को बयान करने वाले शायर हुए।
इस तरह बनी पहचान
जब राहत साहब के वालिद रिफअत उल्लाह 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आए तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनका राहत इस शहर की सबसे बेहतरीन पहचान बन जाएंगे। राहत साहब का बचपन का नाम कामिल था. बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया। राहत साहब का बचपन मुफलिसी में गुजरा. वालिद ने इंदौर आने के बाद आॅटो चलाया, मिल में काम किया, लेकिन उन दिनों आर्थिक मंदी का दौर चल रहा था. 1939 से 1945 तक चलने वाले दूसरे विश्वयुद्ध ने पूरे यूरोप की हालात खराब कर रखी थी।
उन दिनों भारत के कई मिलों के उत्पादों का निर्यात युरोप से होता था. दूर देशों में हो रहे युद्ध के कारण भारत पर भी असर पड़ा। मिल बंद हो गए या वहां छटनी करनी पड़ी. राहत साहब के वालिद की नौकरी भी चली गई। हालात इतने खराब हो गए कि राहत साहब के परिवार को बेघर होना पड़ा। जब राहत साहब ने आगे कलम थामा तो इस वाकये को शेर में बयां किया। इंदौरी के निधन की खबर आने के बाद सोशल मीडिया में शोक की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया यूजर्स उनके शेर और शायरी लिखकर भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं और उन्हें याद कर रहे हैं।
0 Comments
अपना किमती समय देने के लिये
धन्यवाद