छत्तीसगढ़ के मोहम्मद रफ़्फ़ी, लोक गायक मिथलेश साहू के सूरता - जन्मदिवस विशेष

रायपुर/ गरियाबंद। दुनिया मा मनखे ले जादा उँकर कला के चिन्हारी होथे। अउ उँकर कलाकारी हा जग मा अमर हो जाथे। लोगन ला उँकर कला अउ सिरजन कई बछर तक सूरता रथे। अइसने एक अमर लोक गायक अउ कलाकार रिहिस मिथलेश साहू जी। साहू जी केवल एक गायक भर नइ रिहिन बल्कि गाना, बजाना के संगे संग अभिनय मा घलो मंजे हुए कलाकार रिहिन। फेर साहू जी हा एक गायक के रूप मा सबले जादा पहिचान पाइन अउ छत्तीसगढ़ की नइ पूरा भारत देश के लोक गायक के सूची मा अपन जगा बनाइन,लगभग सबो विधा के बहुत अकन छत्तीसगढ़ी गीत मा अपन आवाज दिन।

मिथलेश साहू जी के जन्म तात्कालिक रायपुर (अब गरियाबंद) जिला के बारूका गांव मा अठ्ठाइस जून सन उन्नीस सौ साठ के होय रिहिन। उँकर ददा के नाव श्री जीवन लाल साहू रिहिन। मिथलेश साहू जी ला लोककला उँकर ददा ले विरासत मा मिले रिहिस। साहू जी बारूका गांव मा स्कुल नइ रिहिस तेकर सेती कुकदा गांव चलदिन अउ उँहा श्रीराम सिंह गोड़ के घर रहिके प्राथमिक शिक्षा ला पूरा करिन। प्राथमिक शिक्षा कुकदा मा पूरा करे के बाद उन माध्यमिक शिक्षा पाण्डुका अउ मैट्रिक के शिक्षा गरियाबंद मा पूरा करिन। पढ़ई-लिखई मा हुसियार साहू जी सन उन्नीस सौ ससतर मा कालेज के पढ़ई बर रायपुर आ गिन अउ इहा के दुर्गा कालेज मा भरती होगिन। ये कालेज ले उन बीए के पढ़ई पूरा करिन। एकर बाद एम.ए समाजशास्त्र, बीएड के घलो पढ़ई करिन। साहू जी हा दू जुलाई सन उन्नीस सौ चौरासी मा मास्टर बनगिन। अउ सरलग मास्टरी करत-करत लोक कला के साधना मा लगगिन।



साहू जी के ददा विधायक रिहिन। विधायकी के काम के संगे संग लोककला ले जुड़े रिहिन। उँकर ददा राजिम कुर्रा नाचा पार्टी चलावत रिहिन। उन ला उँकर ददा राजनीती ले दूरिहा रहे के सीख दिन। साहू जी ला लोककला के क्षेत्र मा उंकर ददा ले प्रेरणा मिलिस। लोककला बर ददा के मिले सीख अउ संस्कार के छाँव मा अपन आप ला मांज के अनेक मंच मा अपन प्रस्तुति दिन। उन जब बीए के पढ़ई करत रिहिन ओ समय दाऊ महासिंह चंद्राकर के लोककला मंच सोनहा बिहान ले जुड़गिन। सन उन्नीस सौ अठत्तर मा पहली बार आकाशवाणी मा मौका मिलिस अउ पद्मश्री ममता चंद्राकर जी के संग गाना रिकार्ड होइस। एकर बाद साहू जी आवाज मा गीत मन आकशवाणी सरलग प्रसारित होइस। एकर अलावा साहू जी ला दूरदर्शन मा घलो मौका मिलिस। दू बेर दिल्ली जा के दूरदर्शन के बर रिकार्डिंग करवाइस।


आकशवाणी अउ दूरदर्शन मा साहू जी हा अड़बड़ मान पाइस अउ लोगन के अन्तस मा जगा बनाइन। मुख्य गायक के संगे संग सहायक संगीत निर्देशक अउ अभिनय घलो करिन। रायपुर दूरदर्शन ले प्रसारित कौशल कथा अउ अपना अंचल धारावाहिक मा अपन आवाज दिन। मेहनत अउ लगन के परिणाम साहू जी हा छत्तीसगढ़ी फिलिम अउ एल्बम मा घलव अड़बड़ अकन गाना गाइन। जेमा मया दे दे मया लेले, कारी, फूलकुंवर, तोर मया के मारे, परदेशी के मया फिलिम परमुख रिहिन। ये फिलिम मन मा उँकर आवाज हा सीन ला जीवंत कर देवय। जउन-जउन गाना ला साहू जी गाइस वो गीत मन उनला अउ लोकप्रिय बनादिन।

साहू जी के मोर आजा सजन, मोर जहुरिया, सुमिरन, मया के मड़वा, मोर मन बसिया, नाव के छत्तीसगढ़ी वीडियो एल्बम निकलिस,छत्तीसगढ़ी आडियो कैसेट मा ‘ममता के मया, पीरा, चिन्हारी, लोक रजनी, पिरोहिल, मया के गीत, लोकरंग के संग में गायन के संग संग संगीत निर्देशक के भूमिका निभाइन। लोगन मन के हिरदे मा आज भी ये गीत मन समाय हे,अउ आज के जवनहा मन के मुँह ले सब मया गीत मन निकलत रथे।

उंकर गाये सुन्ना होगे फुलवारी, बाग नदिया रे टुरी, डेरी आखी फरके, कांचा सुपारी ओ, कते जंगल कते झाड़ी जइसन गीत मन बड़ परचार पाइन। ददरिया गीत मा अपन प्रभावी प्रस्तुति देवय तेकरे सेती तो उनला ददरिया के राजा माने जाथे।

साहू जी के छत्तीसगढ़ी लोककला बर अगाध मया रिहिन। लोककला बर उँकर योगदान जग जाहिर हे। उन देस-दुनिया अब्बड़ अकन आयोजन मा संगीत निर्देशक के बुता करिन।

लोककला बर उन जउन मेहनत करिन तेकर सेती उनला अड़बड़ अकन सम्मान मिलिस। जेमा सन् दू हजार तीन मा छत्तीसगढ़ शासन कोती ले सर्वश्रेष्ठ गायक के सम्मान, सन् दू हजार आठ मा राजीव संस्कृति सम्मान, सन दू हजार मा भिलाई इस्पात संयंत्र कोती ले दाऊ महासिंह चन्द्राकर सम्मान परमुख रिहिस। एकर अलावा दू हजार तीन मा राजकीय शिक्षक सम्मान छत्तीसगढ़ सरकार कोती ले मिलिस।


 साहू जी हा सन दू हजार छै ले भूपेंद्र साहू के लोककला मंच रंग सरोवर मा सरलग गावत रिहिन। उन जउँन लगन के संग लोक मंच मा गाना गावय। तब देखइया-सुनइया मन के मुँह ले बस एके आवाज निकलय एक घाव अउ। सिरतोन मा साहू जी के आवाज ला सुन के लोगन मन बंध जावय। उँकर आवाज सुनत कतका बेर रात पहावय पता नइ चलय।

मिथलेश साहू सही न कोनो गायक होय हे न अवइया बेरामा कोनो होवय। अइसन महान गायक अउ लोककलाकार मिथलेश साहू जी हा सोला दिसम्बर सन दू हजार उन्नीस के छत्तीसगढ़ के लोक कला के हासत फुलवारी ला छोड़ के चलदिन। उंकर बिना अब लोककला के फुलवारी हा सुन्ना होगे। लोककला के रखवार श्री मिथलेश साहू जी ला जोहार

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