अमन ताम्रकार, बेमेतरा। क्या कानून की आँखों पर बंधी पट्टी केवल आम आदमी के लिए खुलती है? यह सवाल आज बेमेतरा जिले की सड़कों पर दौड़ती उन तमाम सरकारी गाड़ियों को देखकर उठ रहा है, जो बिना हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट (HSRP) के शान से फर्राटे भर रही हैं। परिवहन विभाग ने फरमान जारी किया है कि HSRP लगवाना अनिवार्य है, वरना भारी-भरकम जुर्माना भुगतना होगा। इस डर से आम जनता कतारों में खड़ी है, अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा खर्च कर रही है और नियमों का पालन कर रही है। लेकिन, दूसरी तरफ 'छत्तीसगढ़ शासन' लिखी गाड़ियाँ खुलेआम इन नियमों को ठेंगा दिखा रही हैं।
आम जनता को 'चिढ़ाती' सरकारी गाड़ियाँ बेमेतरा जिले में यह नजारा आम है। जहाँ एक तरफ ट्रैफिक पुलिस आम आदमी की गाड़ी रोककर HSRP चेक कर रही है, वहीं दूसरी तरफ बगल से सायरन बजाती या 'शासकीय' लिखी गाड़ियाँ बिना HSRP के गुजर जाती हैं। ऐसा लगता है मानो ये गाड़ियाँ कतार में खड़े आम नागरिक को चिढ़ा रही हों कि— "नियम-कायदे और जुर्माना सिर्फ तुम्हारे लिए है, हमारा तो दबदबा है।"
सिस्टम का दोहरा चरित्र. आम आदमी के लिए: समय सीमा, ऑनलाइन स्लॉट की बुकिंग, और न लगवाने पर चालान का खौफ। सरकारी वाहनों के लिए: न कोई डेडलाइन, न कोई चालान, बस गाड़ी पर पदनाम या 'शासन' लिखा होना ही काफी है। स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर भारी रोष है। लोगों का कहना है कि जब नियम बनाने वाले और उनका पालन करवाने वाले ही नियमों की धज्जियां उड़ाएंगे, तो आम जनता से उम्मीद क्यों की जाती है? क्या 'हाई सिक्योरिटी' की जरूरत केवल निजी वाहनों को है, सरकारी वाहनों को नहीं?
सवाल जो जवाब मांगता है बेमेतरा प्रशासन और परिवहन विभाग से जनता का सीधा सवाल है— क्या इन सरकारी वाहनों पर भी वही चालानी कार्यवाही होगी जो एक आम नागरिक पर होती है? या फिर 'शासन का दबदबा' ऐसे ही कानून से ऊपर बना रहेगा?
>टिप्पणी: लोकतंत्र में कानून सबके लिए एक समान होना चाहिए, लेकिन बेमेतरा की सड़कें कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं।
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अपना किमती समय देने के लिये
धन्यवाद